गुरु की महिमा है अकथ, अकथ गुरू आशीष। गुरू पद-पंकज दंडवत "अरुण" झुकाता शीश। अरुण झुकाता शीश, गुरू सेवा ही अमृत। मुक्ति-मार्ग मय ज्ञानांजन, गुरुवाणी से नि:सृत। भव-सागर से तारक गुरुवर, गुरुपद कल्पतरु। अज्ञान-तिमिर को दूर भगाते,पूजनीय पद गुरु! आप सभी इष्ट मित्रों को पवित्र गुरु-पर्व की अनंत शुभकामनाएं! अरुण शुक्ल अर्जुन प्रयागराज Ankrita Tiwari Rashima Sukh Jyoti Yadav VARSHA KUSHWAH khushi