राम और रहीम के बीच एक दीवार थी, जिसे तोड़ दी मैंने. मज़हब की आड़ में इंसानियत को रिझाना छोड़ दी मैंने.. अब तक मैं समझ ना पाया, मज़हब के कितने रंग हैं. कुणाल कबीर तो अलग हो गए देखो, पर जोसेफ किसके संग है.. बड़ी अजीब दास्ताँ ऐ मज़हब है यहाँ, इंसान की कीमत कोई नहीं. मज़हबी ग़ुलामी की ज़ंज़ीर को तोड़े, करले ऐसी हिम्मत कोई नहीं.. मंदिर मस्जिद में बाँट गया इंसान, क्या ये मज़हब की परिभाषा है. शाकिब शंकर की बहन है आलिशा, क्यों नहीं ऐसी मज़ःसब की अभिलाषा है.. दबे कुचले को गले लगाना, तेरा मज़हब और मेरा धर्म है. दिल में इंसानियत को ज़िंदा रखना, शायद सबसे बड़ा कर्म है.. आज वक़्त की ज़रूरत है, इंसानियत को मज़हब बनाने की. लग चुके जो कलंक इंसान पे उसे मरहम आज लगाने की.. #MyPoyetry