कलगी से मेरे नायाब जज़्बात कुछ ऐसे लिख जाऊँ, वाहियात सी सोच पर ज़माने की जिद्द को मिटा जाऊँ, पहरे हज़ार लगा दिए मेरे ,इन बेड़ियों को तोड़ आज, उठे जो आवाज़ पैरहन पर मेरे,इनका नजरिया बदल आऊँ, सुनूँ न इनकी एक मैं आत्मविश्वासी गम्भीर बन कर, ए जमाने जरूरत नही तेरी,मैं स्व का मसाहिब बन जाऊँ, मेरे मंजिल ए मुकाम पर मैं सफलता का ध्वज फहराकर, कर नवाचार कुछ अद्भुत सा मैं नया इतिहास रच जाऊँ, मौक़ूफ़ नही मैं तेरे दिए दो गज जमीन के एहसानों की, दृढ़संकल्प इतना उम्दा करूँ,तुझे मैं अपना दास बनाऊँ, यहाँ हजारों चेहरे हैं हर चेहरे के अलग अक़्स नजर आये, दिखा आईना जमाने को इन्हें वास्तविकता के दर्शन कराऊँ। #जमाना #poetry #ग़ज़ल #शेर #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #profoundwriters #insprational_thought