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हमने अज़ीब ज़िद पाला हुआ था। एक दूसरे से जुदा होना

हमने अज़ीब ज़िद पाला हुआ था।
एक दूसरे से जुदा होना चाहा था।
एक दूजे के पीछे हम तबाह होना था।
अपनी ज़िंदगी अपने ही हाथों बर्बाद करना था।
ना कोई वादा था ना कोई इरादा था एक दूसरे से मिलने की।
बस मर्ज़ी थी जुदा होने की, ज़िन्दगी ना कभी साथ बितानी की।
ना दिल में मोहब्बत ना ही थी हमने ना की कोई बेवफ़ाई थी।
ना मिलने की वादा निभाई थी कसम हमने जो एक दूजे से खाई थी।
मुकद्दर तेरा मेरा साथ ऐसा कुछ हमारा दिया
फ़िर से ज़िंदगी ने साथ एक ही चौराहे पर ला खड़ा किया।
फ़िर से हमें साथ लाया वक्त हालात ने हमें मज़बूर किया। 
कबूल कर लिया एक दूजे को यही सोचकर
कभी तो हमने एक दूसरे से प्यार किया था साथ रहकर।
हमने सोचा था हम एक दूजे के नसीब में नहीं। 
मोहब्बत तो बस तक़दीर कोई ख़्वाब नहीं।
ये मंज़िल ऐसी इसमें सब कामयाब होते नहीं।
जिनसे होना था हमें जुदा ख़ुदा ने बना दिया उसे ही क़िस्मत हमारी।
साथ अब हम ज़िंदगी बीता रहे हैं, एक दूसरे को अपना नसीब मान लिया है।
मोहब्बत के फूल अपने बागबान में खिला लिया है।
तक़दीर, नसीब, क़िस्मत या मुकद्दर हाथों के लक़ीरों का खेल।
लिख गया उसको कोई टाल नहीं सकता जब हो जाता मुकद्दर का मेल।
किसी की किसी के सामने किसी की अर्जी मर्ज़ी नहीं चलती।
जब तक़दीर में ख़ुदा ने अपनी मर्जी लिख दी।

 ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1033 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
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एक दूसरे से जुदा होना चाहा था।
एक दूजे के पीछे हम तबाह होना था।
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बस मर्ज़ी थी जुदा होने की, ज़िन्दगी ना कभी साथ बितानी की।
ना दिल में मोहब्बत ना ही थी हमने ना की कोई बेवफ़ाई थी।
ना मिलने की वादा निभाई थी कसम हमने जो एक दूजे से खाई थी।
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कभी तो हमने एक दूसरे से प्यार किया था साथ रहकर।
हमने सोचा था हम एक दूजे के नसीब में नहीं। 
मोहब्बत तो बस तक़दीर कोई ख़्वाब नहीं।
ये मंज़िल ऐसी इसमें सब कामयाब होते नहीं।
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साथ अब हम ज़िंदगी बीता रहे हैं, एक दूसरे को अपना नसीब मान लिया है।
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