टकरा गया था वो गुलाबो के बागबा में इश्क गुलाब से था जाने कैसे इश्क उसके गुलाबी रुखसार से हो गया गुलाबी सी उसकी मुस्कुराहट पलके मेरी गुलाब की पंखुड़ियों की तरह शर्म से लाल हो गई हाथों में उसके गुलाब जो करीब बन के आया वो नवाब होंट रसभरी गुलाबी पंखुड़ियों की तरह नायाब हो गए राहों में बिखरी रंग बिरंगी गुलाबों की पंखुड़ियां इश्क की हवा से वो तार तार हो गया,,,,, तेरे शहर में आज गुलाबों का मेला है हर तरफ इश्क का असर गहरा है आज तेरी कीमत बहुत ऊंची होगी आशिकों की जज्बात की सोहबत होगी चढ जायेगा परवानों की चाहत में किसी के इश्क में किसी की मजार में,,,,