तेरे इश्क़ का खाका खींचा है क्या सुनना है जो कुछ मुझे महसूस हुआ अल्फाज़ो मैं बुनना है तेरी रसमें तेरे रास्तों मे बे ऐतबारी थी फैसला अब मेरा है दर्द से निकलना या चुनना है मैं तो बस सीधा सादा सा दिल का मारा था अब जैसे भी चाहे मुझको तो सांसें गिनना है कैसी ये लाचारी है मेरे ज़ख्म उखड़ते हैं जिस दिल के हाथों सम्भले थे उसमे ही झुलसना है किस को मैं रोऊँ सारिम कब तक पछतावा अब तेरे इश्क़ का खाका खींचा है क्या सुनना है ©Mohammad sarim #Dard_e_dil #dardemohabbat #dardeishq