अंधेरा.. अब अंधेरा नहीं, उजाला डराता है, तंग गलियां नहीं, अब पक्की सड़क पर चलने को, दिल घबराता हैं, न जाने इसे मेरा वहम कहूं, या मेरी कश्मकश.. बस अब शहरों की, चकाचौंध रोशनी में, हमेशा काला अंधेरा नज़र आता हैं..! संदीप कोठार अंधेरा.. अब अंधेरा नहीं, उजाला डराता है, तंग गलियां नहीं, अब पक्की सड़क पर चलने को, दिल घबराता हैं,