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मातु भवानी ---------------- निर्झर झरती रहे लेखनी

मातु भवानी
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निर्झर झरती रहे लेखनी, वाणी निर्भीक रहे अटल,
चिंतन में मानवता ऊपर, राष्ट्र की हो प्रथम पहल।
परमार्थ मन में भरा हो, मर्यादित सृजित हो हर शब्द,
विचारों में हो सादगी, सत्यमेव सदा बने प्रारब्ध।
जो रिपु हो अन्यायी, शीश उसका नतमस्तक कर दो,
भय का नाश हो जावे, हे मातु ऐसा अभय वर दो।

मन कभी ना बोझिल हो, छाये न गम की काली साया,
लगे सबसे एक लगन, जानूं ना भेद अपना पराया।
बन जाउं अंबर का पंछी, उड़ जाउं उन्मुक्त गगन में,
बस अनंत तक गाता जाऊं, सत्य के गीत चमन में।
जनगण की आवाज बनूं, मां ऐसी अमर शक्ति दो,
अन्याय की कालिख मिट जाए, हे मातु भवानी वर दो।

बहे प्रेम की अविरल गंगा, घाटी घाटी हो स्वछंद,
जन जन पुष्पित हो जावे, भरे सभी मन में मकरंद।
बसे नहीं क्लेश किसी में, हर लो सब पीड़ा संताप,
निरोगी होवे हर काया, हर लो जो होवे अभिषाप।
जीर्णता ना उभरे कभी, ऐसा अमरत्व तन भर दो,
व्यापकता का अभ्युदय हो, हे मातु भवानी वर दो।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दुबे।

©Tarakeshwar Dubey मातु भवानी

#WinterFog
मातु भवानी
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निर्झर झरती रहे लेखनी, वाणी निर्भीक रहे अटल,
चिंतन में मानवता ऊपर, राष्ट्र की हो प्रथम पहल।
परमार्थ मन में भरा हो, मर्यादित सृजित हो हर शब्द,
विचारों में हो सादगी, सत्यमेव सदा बने प्रारब्ध।
जो रिपु हो अन्यायी, शीश उसका नतमस्तक कर दो,
भय का नाश हो जावे, हे मातु ऐसा अभय वर दो।

मन कभी ना बोझिल हो, छाये न गम की काली साया,
लगे सबसे एक लगन, जानूं ना भेद अपना पराया।
बन जाउं अंबर का पंछी, उड़ जाउं उन्मुक्त गगन में,
बस अनंत तक गाता जाऊं, सत्य के गीत चमन में।
जनगण की आवाज बनूं, मां ऐसी अमर शक्ति दो,
अन्याय की कालिख मिट जाए, हे मातु भवानी वर दो।

बहे प्रेम की अविरल गंगा, घाटी घाटी हो स्वछंद,
जन जन पुष्पित हो जावे, भरे सभी मन में मकरंद।
बसे नहीं क्लेश किसी में, हर लो सब पीड़ा संताप,
निरोगी होवे हर काया, हर लो जो होवे अभिषाप।
जीर्णता ना उभरे कभी, ऐसा अमरत्व तन भर दो,
व्यापकता का अभ्युदय हो, हे मातु भवानी वर दो।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दुबे।

©Tarakeshwar Dubey मातु भवानी

#WinterFog

मातु भवानी #WinterFog #कविता