दिसंबर की रातें है, सर्दियों का आलम है, और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा। बेहिसाब किया विकास इन्होंने धर्म के हर मुद्दे में, लेकिन देश की उन्नति में योगदान बिल्कुल ठप रहा। मुगलसराय से दीनदयाल। इलाहाबाद से प्रयागराज। शिक्षा, बेरोजगारी, चिकित्सा अरे छोड़ो फिजूल है। अर्थव्यवस्था कहां मायने रखती है इनके लिए, रुपया कौड़ी के भाव भी इनको क़ुबूल है। ऊपर से वो जनसभाएं भी करने से नहीं थक रहा। और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा। उन्नाव,कठुआ,निर्भया और जाने कितने ही, इंसाफ की तलाश में अब तक भटक रहे है। गाय की कीमत इंसान से बढ़कर हो जहां, उस देश के वासी सचमुच सनक रहे है। सुकून-ए-वतन से ज्यादा सीएए,एनआरसी,जरूरी है, जबकि गली गली में विद्रोह भड़क रहे है। शिक्षा के मंदिर में लाठियां चल रही है, लखनऊ,दिल्ली,मैंगलूरू,शहर के शहर दहक रहे है। फिर भी हर आवाज अनसुनी कर वो अपनी ही मंत्र जप रहा। और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा है। #December#Day19#दिसंबरकीएकरात दिसंबर की रातें है, सर्दियों का आलम है, और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा। बेहिसाब किया विकास इन्होंने धर्म के हर मुद्दे में, लेकिन देश की उन्नति में योगदान बिल्कुल ठप रहा। मुगलसराय से दीनदयाल। इलाहाबाद से प्रयागराज।