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राखी के इस त्योहार में, हर घर में बेटियां पूंजी जा

राखी के इस त्योहार में, हर घर में बेटियां पूंजी जाती हैं।
भाई की सुरक्षा के खातिर, कलाई पर राखी बांधी जाती हैं।।

भाई बहन के पवित्र प्रेम को, रेशम का धागा दर्शाता हैं।
बेटियों को कोख़ में मारने वालों, आज बेटी के लिए तरस जाता हैं।।

कहीं पर उत्साह तो कहीं निराशा, हैं ये राखी का उत्सव भारी।
सुनी पड़ी उस भाई की कलाई, जिस घर में नहीं गूंजी बेटी की किलकारी।।

किसको भाई आज प्यार करें, किसके हाथों से खायें वो मिठाई।
भाई की नहीं हैं कोई भी बहना, सब सूना, जीवन बना उसका रुसवाई।।

भाई कोने में हैं आज पड़ा, कोस रहा वो अपनें भाग्य कों।
बिन मांगे सब कुछ दिया तूने, बहना दे देती मेरे सौभाग्य को।।

मां जैसा वो प्यार करती, पिता के समता करती देखभाल।
बहन रूप में जीवन रक्षा करती, हों जाता जीवन खुशहाल।।

प्यार का चुम्बन देती वो, कभी रूठती कभी मनाती वो।
दोस्त बन भाई को संभालती वो, अपना हर कर्तव्य निभाती वो।। शीर्षक - "बिन बहन का भाई"
राखी के इस त्योहार में, हर घर में बेटियां पूंजी जाती हैं।
भाई की सुरक्षा के खातिर, कलाई पर राखी बांधी जाती हैं।।

भाई बहन के पवित्र प्रेम को, रेशम का धागा दर्शाता हैं।
बेटियों को कोख़ में मारने वालों, आज बेटी के लिए तरस जाता हैं।।

कहीं पर उत्साह तो कहीं निराशा, हैं ये राखी का उत्सव भारी।
सुनी पड़ी उस भाई की कलाई, जिस घर में नहीं गूंजी बेटी की किलकारी।।

किसको भाई आज प्यार करें, किसके हाथों से खायें वो मिठाई।
भाई की नहीं हैं कोई भी बहना, सब सूना, जीवन बना उसका रुसवाई।।

भाई कोने में हैं आज पड़ा, कोस रहा वो अपनें भाग्य कों।
बिन मांगे सब कुछ दिया तूने, बहना दे देती मेरे सौभाग्य को।।

मां जैसा वो प्यार करती, पिता के समता करती देखभाल।
बहन रूप में जीवन रक्षा करती, हों जाता जीवन खुशहाल।।

प्यार का चुम्बन देती वो, कभी रूठती कभी मनाती वो।
दोस्त बन भाई को संभालती वो, अपना हर कर्तव्य निभाती वो।। शीर्षक - "बिन बहन का भाई"

शीर्षक - "बिन बहन का भाई"