तलबदारों की कतार ज़रा लम्बी थी, तेरे दर पर, ज़रा इज़हार कुछ वक्त पहले कर लिया होता, न मैं तड़पता रज़ामंदी की उलझन में, दिन रात दिलबर, न तेरा इंतजार नकारा होता।। ।। तुम जो होते तो..।। हर तरफ़ आलम-ए-तन्हाई का न नज़ारा होता, हाँ,,, तुम जो होते तो ज़िक्र सिर्फ़ तुम्हारा होता। राह-ए-ज़िन्दगी में कई साथी मिले और छूटे भी, ग़म-कश न बनते ग़र तुम्हारा मिला सहरा होता! © Sasmita Nayak