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हो त्रिलोक के तुम स्वामी.. बिरज में हो तुम समाये.

हो त्रिलोक के तुम स्वामी.. 
बिरज में हो तुम समाये..
द्वारिका में गोपियों संग..
कितना हो तुम रास रचाये..

कभी यशोदा कभी देवकी..
कभी राधिका कभी नन्द की..
कभी कालिया कभी पूतना..
किये हो तुम उद्धार सबकी..

कभी सखा संग कभी गोवर्धन..
न्याय किये संग सुदामा निर्धन..
तीन मुट्ठी चावल की दम से,
तीनो लोक में मचा था गर्जन..

        कृष्ण कान्त मिश्र श्री कृष्ण जी के चरणों मे समर्पित..
हो त्रिलोक के तुम स्वामी.. 
बिरज में हो तुम समाये..
द्वारिका में गोपियों संग..
कितना हो तुम रास रचाये..

कभी यशोदा कभी देवकी..
कभी राधिका कभी नन्द की..
कभी कालिया कभी पूतना..
किये हो तुम उद्धार सबकी..

कभी सखा संग कभी गोवर्धन..
न्याय किये संग सुदामा निर्धन..
तीन मुट्ठी चावल की दम से,
तीनो लोक में मचा था गर्जन..

        कृष्ण कान्त मिश्र श्री कृष्ण जी के चरणों मे समर्पित..

श्री कृष्ण जी के चरणों मे समर्पित..