माकूल है कुछ न बोलें हम-तुम गुज़रते वक़्त की संज़ीदगी में किसको खबर है कितने लम्हें लिखा लाएँ हैं हम-तुम ज़िन्दगी में बेफ़िक़राना!पल ये दो चार जी लें या लम्स-दर-लम्स इंतज़ार जी लें चलो ये यादें किसी बस्ते में रखें आरज़ू सही...इन्हीं से होंठ सी लें #coinciding