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माकूल है कुछ न बोलें हम-तुम गुज़रते वक़्त की संज़ीदगी

माकूल है कुछ न बोलें हम-तुम
गुज़रते वक़्त की संज़ीदगी में
किसको खबर है कितने लम्हें
लिखा लाएँ हैं हम-तुम ज़िन्दगी में
बेफ़िक़राना!पल ये दो चार जी लें
या लम्स-दर-लम्स इंतज़ार जी लें
चलो ये यादें किसी बस्ते में रखें
आरज़ू सही...इन्हीं से होंठ सी लें #coinciding
माकूल है कुछ न बोलें हम-तुम
गुज़रते वक़्त की संज़ीदगी में
किसको खबर है कितने लम्हें
लिखा लाएँ हैं हम-तुम ज़िन्दगी में
बेफ़िक़राना!पल ये दो चार जी लें
या लम्स-दर-लम्स इंतज़ार जी लें
चलो ये यादें किसी बस्ते में रखें
आरज़ू सही...इन्हीं से होंठ सी लें #coinciding