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गतांक से आगे...
Part -3
रात के ग्यारह बच चुके थे. श्रीमती जी दिन भर के कार्यों के थकान से बेसुध हो बिस्तर पे निढ़ाल पड़ी थीं । गनीमत है कि उन्हें पता न चला कि मैं सोया नहीं था बल्कि सोने का अभिनय कर रहा था। सोने से पहले उन्होंने एकाध बार मुझे आवाज देकर यह ताड़ने की कोशिश जरूर की थी कि मैं सोया हूँ या नहीं। कोई प्रति उत्तर न पाकर वो भी बिस्तर के दूसरे छोर पर निढ़ाल हो गई थीं और लेटते ही गहरी नींद ने उन्हें अपनी आगोश में समेट लिया था।
नींद मेर