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मैने कब सोचा था कि मानव नज़रो से गिर जायेगा शायद

मैने कब सोचा था कि मानव 
नज़रो से गिर जायेगा
शायद ही कोई विरला होगा
जो भारत को बचायेगा

भाई को भाई मार रहा
अब लालच देश मे फ़ैला है
तन को तो हर कोई साफ़ करे
पर लोगो का मन मैला है 
है कोई जो इन गद्दारों को
प्रेम का पाठ पढायेगा
शायद ही कोई विरला होगा
जो भारत को बचायेगा

कुछ अपने दुखो से है ना दुखी
दूजो के सुख से जलते है
मदहोश है कुछ तो महलो मे
पर कुछ झोपड़ मे पलते है 
जुल्मों का पहरा ये इकदिन
क्या क्या खेल खिलाएगा
शायद ही कोई विरला होगा
जो भारत को बचायेगा

ये आज का मानव अपने लिए
ही जीता है और मरता है
ईश्वर से तो डरता ही नही
अपनी मनचाही करता है 
जो जैसा करता है गौतम,
वैसा ही फल पायेगा
शायद ही कोई विरला होगा
जो भारत को बचायेगा

©Classical gautam
  #Kalyugimanav