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ग़ज़ल - 2122 2122 2122 1212 उलझती गिरती रही ग

ग़ज़ल - 2122 2122 2122 1212

उलझती   गिरती   रही   गर  जा'वे'दानी   हलाक   में
ये  मुहब्बत   हो  गयी  फिर  सर'गि'रानी   हलाक   में

आगे   चलकर  हमसे  भी  मावरा  हो  तो  क्या  हुआ
कब    ठहरता    है   मियाँ   कोई   पानी   हलाक   में

बारिशें सहराओं  तक  आने  में  मर  जाती  है  फ़क़त
और  तू    कर'ने    लगा   है   बाग'बानी    हलाक   में

कित'ने खूँ-तर लगते  है फिर  इश्क में पड़ने वाले लोग
गालिबन  यक  बस   यही  है  हर  मआनी  हलाक  में

दाग़  कल  कुछ   दोस्तों  से  फिर  हमारी   नही   बनी
यार   सब   करने  लगे   है   खुश-ब'या'नी   हलाक  में

अब तिरी इक़  शाम  मुझको  भी  उधारी  पे  देदो  बस
काटती   है    मुझको    कोई    बे-ज़बानी   हलाक   में

लड़कियों  तुम इश्क कर  लो  मुझसे  मरने  लगा  हूँ  मैं
आजकल   बढ़ने   लगी   है   खूँ-फ़िशानी   हलाक   में

आखिरी  मर'घट   तिरी  कोई  ग़ज़ल  पर  मिला  जिया 
हर   जखीरा   हो   गया   फिर   शादमानी   हलाक   में

©Jiya Wajil khan #जिया #ग़ज़ल
ग़ज़ल - 2122 2122 2122 1212

उलझती   गिरती   रही   गर  जा'वे'दानी   हलाक   में
ये  मुहब्बत   हो  गयी  फिर  सर'गि'रानी   हलाक   में

आगे   चलकर  हमसे  भी  मावरा  हो  तो  क्या  हुआ
कब    ठहरता    है   मियाँ   कोई   पानी   हलाक   में

बारिशें सहराओं  तक  आने  में  मर  जाती  है  फ़क़त
और  तू    कर'ने    लगा   है   बाग'बानी    हलाक   में

कित'ने खूँ-तर लगते  है फिर  इश्क में पड़ने वाले लोग
गालिबन  यक  बस   यही  है  हर  मआनी  हलाक  में

दाग़  कल  कुछ   दोस्तों  से  फिर  हमारी   नही   बनी
यार   सब   करने  लगे   है   खुश-ब'या'नी   हलाक  में

अब तिरी इक़  शाम  मुझको  भी  उधारी  पे  देदो  बस
काटती   है    मुझको    कोई    बे-ज़बानी   हलाक   में

लड़कियों  तुम इश्क कर  लो  मुझसे  मरने  लगा  हूँ  मैं
आजकल   बढ़ने   लगी   है   खूँ-फ़िशानी   हलाक   में

आखिरी  मर'घट   तिरी  कोई  ग़ज़ल  पर  मिला  जिया 
हर   जखीरा   हो   गया   फिर   शादमानी   हलाक   में

©Jiya Wajil khan #जिया #ग़ज़ल