"मोतियाबिंद" . पापा की आंखों में जब से उतरा है दुखों का मोतिया मेरी आंखों की रोशनी हो गई है और तेज जो काट देना चाहती है उसे परत दर परत। . दुखों का मोतिया मोहताज नहीं है उम्र का अचानक आ धमकता है जीवन के किसी भी मोड़ पर यों डेरा डाल लेती हैं झुर्रियां जवान विधवा के चेहरे पर। . मोतिया चाहे आंख का हो या दुखों का कुछ नहीं सूझता इसमें लेकिन मेरी आंखों की तेज होती रोशनी जब छूकर लौटती है मोतियाबिंद की आंख ना जाने कैसे दिखने लगता है पापा को हर बिंब साफ-साफ। :) :) :) मोतियाबिंद