ख़ाब की बातें करूँ या मैं हक़ीक़त बोल दूँ ख़ाब ही गर हो हक़ीक़त फिर कहो मैं क्या कहूँ वो मुरद्दफ़ इक ग़ज़ल हर बात उसपे जा टिके कोई भी तरक़ीब हो उसपे ले जा के छोड़ दूँ दोस्तों ने कह दिए अशआर लाखों और मैं सोचता ही रह गया कैसे बड़ा शाइर बनूँ अब बिखरने के अलावा और क्या है रास्ता अब बिखर के ही मिलेगा आख़िरश मुझको सुकूँ बिन कहे सब कुछ कहूँ आता नहीं ये फ़न मुझे हैसियत ही क्या मिरी जो एक मिसरा कह सकूँ इश्क़ में कैसा नज़ारा बन गया है देख लो मुस्कुराऊँ याद करके आह भर के रो पड़ूँ ©UrbanFakeer Gautam Sharma #ghazal by #urbanfakeer #sher #pyaar #Love #pain #ishq #sukoon