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रूठा था खुद से, कोई तो मानता। मायूस थे मेरे लब, को

रूठा था खुद से,
कोई तो मानता।
मायूस थे मेरे लब,
कोई तो हसाता।
था अकेला महफ़िल में,
कोई अपनापन तो जताता
मत करो अब मेरे सब बख़ान,
जब चाहा तब नहीं मिला था मुझे मुकाम।
रूह को झकझोर रही थी, फरेबी नज़रे सबकी
आज वक्त जैसा है ये भी बीत जाएगा,
कोई तो प्यार से बताता।
रूह तो पहले ही मर चुकी थी,
आज तो बस जिस्म गया है,
मांगा था सिर्फ हक ही तो अपना,
क्या पता था दिखावे के आगे ज़माना बिक गया है। #SushantSinghRajput hum kbhi khud se nahi marte... jamana hme majbur karta hai... har muskurata hua chehara KHUSH nahi hota.
रूठा था खुद से,
कोई तो मानता।
मायूस थे मेरे लब,
कोई तो हसाता।
था अकेला महफ़िल में,
कोई अपनापन तो जताता
मत करो अब मेरे सब बख़ान,
जब चाहा तब नहीं मिला था मुझे मुकाम।
रूह को झकझोर रही थी, फरेबी नज़रे सबकी
आज वक्त जैसा है ये भी बीत जाएगा,
कोई तो प्यार से बताता।
रूह तो पहले ही मर चुकी थी,
आज तो बस जिस्म गया है,
मांगा था सिर्फ हक ही तो अपना,
क्या पता था दिखावे के आगे ज़माना बिक गया है। #SushantSinghRajput hum kbhi khud se nahi marte... jamana hme majbur karta hai... har muskurata hua chehara KHUSH nahi hota.