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हवा कुछ कह रही थी, जब पर्वत के पास बह रही थी, रहो

हवा कुछ कह रही थी,
जब पर्वत के पास बह रही थी,
रहो अडिग अपने घर पर,
मत मुझसे घबराओ,
हो तुम अचल अपने प्रण पर,
फिर क्यों शीश नवाओ,
मैं तो बस अपने पथ पर बह रही थी।
हवा कुछ कह रही थी।
जब वृक्ष के पास से बह रही थी,
रहो विनम्र तुम स्वभाव से तनिक झुक जाओ,
मैं तो तुम्हारी पुष्पसुगंध चारों ओर बिखेर रही थी ।
हवा कुछ कह रही थी।
तुम जैसे हो, वैसे बनो रहो,
मैं तो अपनी मंजिल तय कर रही थी।
 हम अक्सर पार्कों में, खुली जगहों पर जाते हैं मगर वहाँ रहते नहीं।
#हवाकहरहीथी #collab #yqdidi    #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
हवा कुछ कह रही थी,
जब पर्वत के पास बह रही थी,
रहो अडिग अपने घर पर,
मत मुझसे घबराओ,
हो तुम अचल अपने प्रण पर,
फिर क्यों शीश नवाओ,
मैं तो बस अपने पथ पर बह रही थी।
हवा कुछ कह रही थी।
जब वृक्ष के पास से बह रही थी,
रहो विनम्र तुम स्वभाव से तनिक झुक जाओ,
मैं तो तुम्हारी पुष्पसुगंध चारों ओर बिखेर रही थी ।
हवा कुछ कह रही थी।
तुम जैसे हो, वैसे बनो रहो,
मैं तो अपनी मंजिल तय कर रही थी।
 हम अक्सर पार्कों में, खुली जगहों पर जाते हैं मगर वहाँ रहते नहीं।
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drnehagoswamisha4463

नेहा

New Creator

हम अक्सर पार्कों में, खुली जगहों पर जाते हैं मगर वहाँ रहते नहीं। #हवाकहरहीथी #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi