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मैं सोच समझकर , बहका हूं , आप छोड़ो मुझे संभालना

मैं सोच समझकर , बहका हूं ,
आप छोड़ो  मुझे  संभालना ।।

गांव कभी , अब याद नहीं आता ,
क्यों , केसे , अरे छोड़ ,मसला टाल ना ।।

बस्ती  की रोनकें , अब भाती नहीं ,
 पड़ेगा ,जोगा, दर सहरा डेरा डालना ।।

धूल से लथपथ चेहरा था , 
धूल से सने बाल , फिर भी लगा कमाल ना ।।

ना सजी थी ,ना ही संवरी ,
 सांवली सी पर ,क्या खूब था ज़माल ना ।।

उससे क्या रिश्ता है ,
उसे क्या कहें , कैसा है , सवाल ना ।।

उसके गांव से होकर ,आए हो ,
यारो ,ठीक है ,उसका हाल ना ।।

सुना है , दो बच्चों की मां है अब ,
कमज़ोर हो गई होगी , कैसा होगा हाल ना ।।

अब उसके कूचे से निकलकर ,
जोगा ,ये बियाबां , लगे खुशहाल ना ।।

जोगा भागसरिया ।।

ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI
KAFIR ZOGA GULAM

©ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI_KAFIR ZOGA GULAM मैं सोच समझकर , बहका हूं ,
आप छोड़ो  मुझे  संभालना ।।

गांव कभी , अब याद नहीं आता ,
क्यों , केसे , अरे छोड़ ,मसला टाल ना ।।

बस्ती  की रोनकें , अब भाती नहीं ,
 पड़ेगा ,जोगा, दर सहरा डेरा डालना ।।
मैं सोच समझकर , बहका हूं ,
आप छोड़ो  मुझे  संभालना ।।

गांव कभी , अब याद नहीं आता ,
क्यों , केसे , अरे छोड़ ,मसला टाल ना ।।

बस्ती  की रोनकें , अब भाती नहीं ,
 पड़ेगा ,जोगा, दर सहरा डेरा डालना ।।

धूल से लथपथ चेहरा था , 
धूल से सने बाल , फिर भी लगा कमाल ना ।।

ना सजी थी ,ना ही संवरी ,
 सांवली सी पर ,क्या खूब था ज़माल ना ।।

उससे क्या रिश्ता है ,
उसे क्या कहें , कैसा है , सवाल ना ।।

उसके गांव से होकर ,आए हो ,
यारो ,ठीक है ,उसका हाल ना ।।

सुना है , दो बच्चों की मां है अब ,
कमज़ोर हो गई होगी , कैसा होगा हाल ना ।।

अब उसके कूचे से निकलकर ,
जोगा ,ये बियाबां , लगे खुशहाल ना ।।

जोगा भागसरिया ।।

ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI
KAFIR ZOGA GULAM

©ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI_KAFIR ZOGA GULAM मैं सोच समझकर , बहका हूं ,
आप छोड़ो  मुझे  संभालना ।।

गांव कभी , अब याद नहीं आता ,
क्यों , केसे , अरे छोड़ ,मसला टाल ना ।।

बस्ती  की रोनकें , अब भाती नहीं ,
 पड़ेगा ,जोगा, दर सहरा डेरा डालना ।।