दिल के कुछ जज्बात है, पन्नों पर बिखेरु कैसे? आँखों में आंसू है तो होठों पर मुस्कान हो कैसे? दिल के सारे हँसी सितम,रोते-रोते सह तो लू मैं,, इन हँसी सितम को आखिर,सहना है कब तक ही ऐसे? जज्बातो की इन आँधी को,खुद में ही थामू मैं कैसे? दुसरो की बेवकूफी पर भी,आखिर क्यों रोती हु मै ऐसे? खुद के अक्स देखना ,शीशे में खुद से रूठी तकदीर मिलेगी, खुद के आँखों में भी झांकना, एक दर्द की तस्वीर मिलेगी। Ritika suryavanshi pooja negi# बृजेश कुमार बेबाक़