मेरी कलम भी आज रोने लगी है। स्याही से पन्नों को भिगोने लगी है। कहती है पाण्डेय जी आप बहुत वफादार हो, मेरी मोहब्बत को शब्दों में सँजोने लगी है। संजीव पाण्डेय