अपने जज्बातों की राख़ लिए फिरती हूं कौन ज़िम्मेदार है इनके जनाजे का झुलस गई सारी उम्मीदें जिसमें वो आग लगाई है न जाने किसने तड़प के रह गई है रुह मेरी आंखों की नमी भी अब जाती नहीं मुस्कुराहटों के दिखावे में न जाने कबसे मैं ज़िंदा लाश को ढो रही हूं आगे कुछ दिखाई देता नहीं है धुंधले से रास्ते पे चल पड़ी हूं लौटना भी अब मुमकिन नहीं है खुद से ही आस छोड़ बैठी हूं ©Swati kashyap #राख़#mywords#nojotohindi#nojotopoetry #nojotowriter