तुझसे इतना इल्तजा हैं बारिश मेरे छत पर न बरस न मोहब्बत हैं तुझसे न नफरत का इरादा तेरे बुंदे न छुती हैं मुझको न शरमाई हुई उसके बाहों में सिमटती हूँ क्यों इतना बरस रही हैं लगता हैं तेरा भी दिल भारी हैं।।। मेरे छत पर न बरस ।।