एक-एक कदम बढ़ाती चली जाती हूँ… सबको अपना बनाती चली जाती हूँ… दुश्मन भी ज्यादा दूर रह नहीं पाते मुझसे… विनम्रता वाला वो जादू चलाती चली जाती हूँ… कीचड़ में खिले कमल सी ही हूँ कुछ-कुछ… लाख बुराईयों में रहकर भी खिल-खिल मुस्कुराती चली जाती हूँ… बस खुशियाँ लुटाना ही काम है मेरा... तो प्रेम की नदियाँ बहाती चली जाती हूँ… ©Divya Joshi एक-एक कदम बढ़ाती चली जाती हूँ… सबको अपना बनाती चली जाती हूँ… दुश्मन भी ज्यादा दूर रह नहीं पाते मुझसे… विनम्रता वाला वो जादू चलाती चली जाती हूँ… कीचड़ में खिले कमल सी ही हूँ कुछ-कुछ…