#आस आस टूटती है जब झर झर आँसू झरते हैं खुशबू वाले फूलों से भी तब अँगारे बरसा करते हैं ऐ मेघों के अमर गीत विरहा का श्रँगार करो कुछ और नहीं कर सकते तो इस प्रणय भाव का संहार करो त्यागो अपनी समरसता त्यागो मधुर वाणी कलरव विष भर लो अन्तस में बन जाओ पुनः अभिमानी अब न मेघों का वर्षण होगा न व्यक्तित्वों का आकर्षण होगा भरेगा पुनः तम अन्तस में भावों का फिर वही पतझड़ होगा 🙏 My second poem #आस