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"जैत्रसिंह" मेवाड़ के शौर्य का एक और पन्ना। (1213 -

"जैत्रसिंह"
मेवाड़ के शौर्य का एक और पन्ना।
(1213 - 1252 ई.)
मेवाड़ की गद्दी पर जैत्रसिंह के बैठते ही जालौर में चौहान राज्य के संस्थापक कीर्तिपाल से गुहिल राजा सामन्तसिंह की पराजय का बदला लेने के लिए अपने समकालीन नाडौल के चौहान राजा उदयसिंह पर आक्रमण कर दिया।उदयसिंह ने अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी पौत्री रुपादेवी का विवाह जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ कर मेवाड़ और नाडौल में मैत्री स्थापित की।जैत्रसिंह ने मालवा के परमार राजा देवपाल को हराकर अपना अधिकार जमाया और गुजरात के सोलंकियों का मैत्री प्रस्ताव ठुकरा दिया।इधर दिल्ली में तुर्कों की जड़ें मज़बूत हो गईं तो "इल्तुतमिश" ने मेवाड़ को अधिकार में लेने के लिए आक्रमण कर दिया। जब अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो गया तो राजस्थान के विस्तृत भू-भाग पर तुर्को ने लूट ख़सूट शुरू कर दी थी।मेवाड़ अभी भी मोहम्मद गौरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों से बचा हुआ था।
1222 से 1229 ई. के मध्य 'इल्तुतमिश' ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।जय सिंह सूरि ने अपने "हम्मीरमदमर्दन" में लिखा है कि मुस्लिम सेना मेवाड़ की राजधानी 'नागदा' तक पहुँच गई। उसने आसपास के कस्बों,गाँवों को बर्बाद कर दिया और कई भवनों को नष्ट कर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई।
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जब युद्ध के मैदान में जैत्रसिंह ने सीधे न कूदकर छापामार युद्ध नीति का उपयोग किया तो इल्तुतमिश की सेना के पैर उखड़ गए और मुसलमान पदाक्रांता भाग खड़े हुए लेकिन उससे पहले वे नागदा को नष्ट कर चुके थे। इसकी पुष्टि चीरवा के शिलालेख से होती है।
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डॉ दशरथ शर्मा कहते हैं कि - जैत्रसिंह ने तुर्कों को पीछे खदेड़ दिया परन्तु मेवाड़ की राजधानी नागदा को बड़ी हानि उठानी पड़ी।
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नागदा के नष्ट हो जाने के बाद ही गुहिलों ने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया और फिर आने वाली कई सदियों तक उसे यह गौरव प्राप्त हुआ।
"जैत्रसिंह"
मेवाड़ के शौर्य का एक और पन्ना।
(1213 - 1252 ई.)
मेवाड़ की गद्दी पर जैत्रसिंह के बैठते ही जालौर में चौहान राज्य के संस्थापक कीर्तिपाल से गुहिल राजा सामन्तसिंह की पराजय का बदला लेने के लिए अपने समकालीन नाडौल के चौहान राजा उदयसिंह पर आक्रमण कर दिया।उदयसिंह ने अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी पौत्री रुपादेवी का विवाह जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ कर मेवाड़ और नाडौल में मैत्री स्थापित की।जैत्रसिंह ने मालवा के परमार राजा देवपाल को हराकर अपना अधिकार जमाया और गुजरात के सोलंकियों का मैत्री प्रस्ताव ठुकरा दिया।इधर दिल्ली में तुर्कों की जड़ें मज़बूत हो गईं तो "इल्तुतमिश" ने मेवाड़ को अधिकार में लेने के लिए आक्रमण कर दिया। जब अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो गया तो राजस्थान के विस्तृत भू-भाग पर तुर्को ने लूट ख़सूट शुरू कर दी थी।मेवाड़ अभी भी मोहम्मद गौरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों से बचा हुआ था।
1222 से 1229 ई. के मध्य 'इल्तुतमिश' ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।जय सिंह सूरि ने अपने "हम्मीरमदमर्दन" में लिखा है कि मुस्लिम सेना मेवाड़ की राजधानी 'नागदा' तक पहुँच गई। उसने आसपास के कस्बों,गाँवों को बर्बाद कर दिया और कई भवनों को नष्ट कर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई।
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जब युद्ध के मैदान में जैत्रसिंह ने सीधे न कूदकर छापामार युद्ध नीति का उपयोग किया तो इल्तुतमिश की सेना के पैर उखड़ गए और मुसलमान पदाक्रांता भाग खड़े हुए लेकिन उससे पहले वे नागदा को नष्ट कर चुके थे। इसकी पुष्टि चीरवा के शिलालेख से होती है।
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डॉ दशरथ शर्मा कहते हैं कि - जैत्रसिंह ने तुर्कों को पीछे खदेड़ दिया परन्तु मेवाड़ की राजधानी नागदा को बड़ी हानि उठानी पड़ी।
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नागदा के नष्ट हो जाने के बाद ही गुहिलों ने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया और फिर आने वाली कई सदियों तक उसे यह गौरव प्राप्त हुआ।

जब अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो गया तो राजस्थान के विस्तृत भू-भाग पर तुर्को ने लूट ख़सूट शुरू कर दी थी।मेवाड़ अभी भी मोहम्मद गौरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों से बचा हुआ था। 1222 से 1229 ई. के मध्य 'इल्तुतमिश' ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।जय सिंह सूरि ने अपने "हम्मीरमदमर्दन" में लिखा है कि मुस्लिम सेना मेवाड़ की राजधानी 'नागदा' तक पहुँच गई। उसने आसपास के कस्बों,गाँवों को बर्बाद कर दिया और कई भवनों को नष्ट कर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई। : जब युद्ध के मैदान में जैत्रसिंह ने सीधे न कूदकर छापामार युद्ध नीति का उपयोग किया तो इल्तुतमिश की सेना के पैर उखड़ गए और मुसलमान पदाक्रांता भाग खड़े हुए लेकिन उससे पहले वे नागदा को नष्ट कर चुके थे। इसकी पुष्टि चीरवा के शिलालेख से होती है। : डॉ दशरथ शर्मा कहते हैं कि - जैत्रसिंह ने तुर्कों को पीछे खदेड़ दिया परन्तु मेवाड़ की राजधानी नागदा को बड़ी हानि उठानी पड़ी। : नागदा के नष्ट हो जाने के बाद ही गुहिलों ने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया और फिर आने वाली कई सदियों तक उसे यह गौरव प्राप्त हुआ। #yqbaba #yqdidi #yqhindi #Pinterest #गुलिस्ताँ #पाठकपुराण #येरंगचाहतोंके #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1