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कभी टूट कर तो कभी यूं ही बिखर गया हूं मंज़ि

  कभी टूट कर तो कभी  यूं  ही बिखर  गया  हूं

मंज़िल पाने  को  जानें किधर  किधर  गया  हूं

दौड़ - धूप करते  रहा  एक  सपना  के खातिर
मुझे नयी मंज़िल मिलता गया मैं जिधर गया हूं।
कवि मुन्ना कुमार"अजनबी"
  कभी टूट कर तो कभी  यूं  ही बिखर  गया  हूं

मंज़िल पाने  को  जानें किधर  किधर  गया  हूं

दौड़ - धूप करते  रहा  एक  सपना  के खातिर
मुझे नयी मंज़िल मिलता गया मैं जिधर गया हूं।
कवि मुन्ना कुमार"अजनबी"
munnakumar1137

Munna Kumar

New Creator

कभी टूट कर तो कभी यूं ही बिखर गया हूं मंज़िल पाने को जानें किधर किधर गया हूं दौड़ - धूप करते रहा एक सपना के खातिर मुझे नयी मंज़िल मिलता गया मैं जिधर गया हूं। कवि मुन्ना कुमार"अजनबी"