सबने मेरी हँसी देखी मुस्कान देखा किसी नें ना देखा.. मेरा दर्द मेरी तकलीफ़ ना पूछा किसी नें मेरे हालात! सबने मेरे शब्दों को समझा, समझा नहीं किसी नें ज़ज्बात, देह में चुभती रही मेरी साँसें, तड़पती रहीं मैं दिनरात! दिल पर पत्थर रखकर जो मैंने कहा उसपे सबने यकीन किया, ना आँसुओं की भाषा को समझे ना किया मुझपर विश्वास! झूठी रस्मों रिवाजों के ख़ातिर भूल गई मैं अपने एहसास.. जितना आदर किया सबका उतना ही किया मेरा तिरस्कार! सबकी ख़ुशी सबके हीत के लिए मैं लड़ती रही हरएक से.. मेरी ख़ुशी, मेरा दर्द, मेरी पीड़ा,को सबने समझा बस एक मज़ाक! सुप्रभात, 🌼🌼🌼🌼 🌼आज का हमारा विषय "आँसुओं की भाषा" बहुत ख़ूबसूरत है, आशा है आप लोगों को टॉपिक पसंद आएगा। 🌼आप सब सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए लिखना आरंभ कीजिए।