रास्ते में ठहरा था वो भूखा, जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं । गलियों में हाँथ फैलाये था वो नंगा, जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं । मैंने दर्द को दर-दर की ठोकरें खाते देखा है, जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं । खेतों को सींच रहा था वो बेखबर, जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं । वो बेखौफ खड़ा था अस्पतालों में, जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं । बस तेरी-मेरी निगरानी में जूझ रहा था सड़कों पे, जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं । #मुकेश पटेल✍️ #Hope My_Words✍✍