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रास्ते में ठहरा था वो भूखा, जिसकी अर्थव्यवस्था का

रास्ते में ठहरा था वो भूखा,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
गलियों में हाँथ फैलाये था वो नंगा,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
मैंने दर्द को दर-दर की ठोकरें खाते देखा है,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
खेतों को सींच रहा था वो बेखबर,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
वो बेखौफ खड़ा था अस्पतालों में,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
बस तेरी-मेरी निगरानी में जूझ रहा था सड़कों पे,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।





#मुकेश पटेल✍️ #Hope  Sajal My_Words✍✍ Anjali Goswami Jonny aman6.1  Richa Khare
रास्ते में ठहरा था वो भूखा,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
गलियों में हाँथ फैलाये था वो नंगा,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
मैंने दर्द को दर-दर की ठोकरें खाते देखा है,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
खेतों को सींच रहा था वो बेखबर,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
वो बेखौफ खड़ा था अस्पतालों में,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।
बस तेरी-मेरी निगरानी में जूझ रहा था सड़कों पे,
जिसकी अर्थव्यवस्था का किसी को अंदाजा नहीं ।





#मुकेश पटेल✍️ #Hope  Sajal My_Words✍✍ Anjali Goswami Jonny aman6.1  Richa Khare
mukeshpatel7365

Mukesh Patel

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