हर लम्हा, उस इक बूंद-सा है मुसाफिर, चाहोगे पकड़ना जब आकर हाथ से फिसल जाएगा.. इश्क में हाल-ए-दिल की बात क्या ही करूं, चाहोगे भूलना जितना, उतना ही ये मचल जाएगा.. फ़िक्र को रखो दरम्यां अपने या फिर चले जाने दो, ये फिर आकर तुझसे ही लिपट जाएगा.. इतना भी मुश्किल नहींंं मंजिल से रूबरू होना , जलाए रखना बस लौ-ए-जुनून, मोम ही है, पिघल जाएगा.. -कात्यायनी #nature#poetry#nevergiveup