*ये वक्त की घड़ियाँ कितनी जल्दी निकल जाती हैं, वो शरारतें कैसे; ज़िम्मेदारियों में बदल जाती हैं, घर के आँगन में परिवार के साथ; जो खिलखिलाया करती थीं, अपनो से दूर हो कर; वो मुस्कान भी ढल जाती है| वो यादें धुंधली-धुंधली सी; अक्सर मुझे सताती हैं, हाँ घर की याद; अक्सर मुझे आती है... . वो बचपन में खाने के लिए; लाख मनाना पड़ता है, जला-भुना भी खा लेते हैं अब; जब खुद बनाना पड़ता है, आज महंगे होटलों में भी; मगर वो स्वाद नहीं मिलता, न जाने अपने खाने में; माँ ऐसा क्या मिलाती है| हाँ घर की याद; अक्सर मुझे आती है... . सामने आवाज़ नहीं निकलती थी; पर अब पापा से भी चर्चे करने लगे हैं, हमने तो मांगा हमेशा ही; अब थोड़ा बहुत घर के लिए भी खर्चे करने लगे हैं, पर आज भी घर से लौटते वक्त; तब तक विदाई नहीं होती, जब तक 100 के नोट के साथ; दादी की दुआ नहीं मिल जाती है| हाँ घर की याद; अक्सर मुझे आती है... . पहले भाइयों से चिढ़ना लड़ना होता था; पर अब समझाना होता है, वो बहनों की रोज़ की नादानी; अब राखी पर भी मुश्किल मिल पाना होता है, वो बैठ कर सब फुरसत से; किस्से कहानियाँ सुना करते थे, पर अब तो वक्त निकाल कर; फोन में कुछ पल ही बात हो पाती है| हाँ घर की याद; अक्सर मुझे आती है... . सपने तो पहले देखते थे; अब आँखों में नींद ही कहाँ समाती है, ख्वाबों से उलट है सब कुछ; दुनिया हकीकत ऐसी दिखाती है, पर इसी का नाम है ज़िन्दगी; ये ऐसे ही जीना सिखाती है, पर हाँ घर की याद बहुत; अक्सर मुझे आती है..... *Ghar ki yaad aksar mujhe aati h #family #bachpan #nojoto #Kalakaksh2.0 #amar_shayari #yaadein