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दूर गगन के क्षितिज बिन्दु तक, आओ मिलकर ध्वज फहराएं

दूर गगन के क्षितिज बिन्दु तक, आओ मिलकर ध्वज फहराएं।
वीर  सपूतों  की  धरती पर, स्वतंत्रता का दिवस मनाएं।

घनें  अँधेरों  की  छाती में, सूर्य किरण की कीलें ठोकें।
भाग्य भरोसे बैठे मन को ,कर्मठ युग में चलकर झोकें।
अलसायी आँखों में घुसकर, लक्ष्य प्राप्ति का पथ दिखलाएं।
स्वतंत्रता---------------------(१)

हम नव युग के भावी भारत, अनुशीलन से नहीं डरेंगे।
स्वाध्यायों के हर पृष्ठों  को,पलभर में कंठस्थ करेंगे।
मेहनत और लगन से पढ़कर,चलो नया इतिहास रचाएं।
स्वतंत्रता---------------------(२)

सीमाओं पर ड़टे हुए उन,वीर जवानों से कुछ सीखें।
सबकी भूख मिटाने वाले,धीर किसानों से कुछ सीखें।
इनके पद चिन्हों की माटी,से हम अपना भाल सजाएं।
स्वतंत्रता---------------------(३)

बटुकेश्वर, आजाद, भगत की,भूल न जाएं हम कुर्बानी।
लक्ष्मी और महाराणा के,पराक्रमों की अमर कहानी।
भारत माँ के अमर शहीदों,की समाधि पर दीप जलाएं।
स्वतंत्रता-----------------(४)

©करन सिंह परिहार
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