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एक दिली ख्वाहिश मेरी मुझे सताती है के किसी दिन तु

एक दिली ख्वाहिश मेरी मुझे सताती है 
के किसी दिन तुम्हे गुलाब दूं 
ये चाह दिल में कही दबी जाती है, 
इसी बहाने इश्क जताने का माहोल बनाती है 
के एक पल तुम मुझे देख मुस्कुराओ 
अगले पल शर्म से पलके झुकाओ
 ये लम्हा एक बार तुम्हारे साथ जीने का तलबगार बनाती है।

©Rajender
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