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// इतना वक़्त कहाँ // इतना वक़्त कहाँ, कुछ कह सकू

//  इतना वक़्त कहाँ  //

इतना वक़्त कहाँ, कुछ कह सकूँ ।
कुछ मन की, कुछ अरमानों की फिक्र कर सकूँ ।

इतना वक़्त कहाँ की धड़कने सुन सकूँ ।
कुछ बिखरे ज़स्बात, कुछ धीमी सौगात में बस सकूँ ।

हाँ! ख़ुद से मिले एक अरसा हो गया ।
हिम्मत कहाँ हुयी फ़िर भी भीतर गड़े
एहसासों को समझ सकूँ ।
ह्रदय में मचे इस घनघोर शोर को भेद सकूँ ।

इतना वक़्त कहाँ की कुछ लम्हें बाँध सकूँ ।
कभी ख़ामोशी से, कभी किसी धुन में
हर लम्हा पिरो सकूँ ।

- सुचिता पाण्डेय✍  #सिनेमाग्राफ
#इतना वक़्त कहाँ
//  इतना वक़्त कहाँ  //

इतना वक़्त कहाँ, कुछ कह सकूँ ।
कुछ मन की, कुछ अरमानों की फिक्र कर सकूँ ।

इतना वक़्त कहाँ की धड़कने सुन सकूँ ।
कुछ बिखरे ज़स्बात, कुछ धीमी सौगात में बस सकूँ ।

हाँ! ख़ुद से मिले एक अरसा हो गया ।
हिम्मत कहाँ हुयी फ़िर भी भीतर गड़े
एहसासों को समझ सकूँ ।
ह्रदय में मचे इस घनघोर शोर को भेद सकूँ ।

इतना वक़्त कहाँ की कुछ लम्हें बाँध सकूँ ।
कभी ख़ामोशी से, कभी किसी धुन में
हर लम्हा पिरो सकूँ ।

- सुचिता पाण्डेय✍  #सिनेमाग्राफ
#इतना वक़्त कहाँ