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यूह जो रुख़ फ़ेरा हैं तुम ने , इसमें जरूर मेरी कोई

यूह जो रुख़ फ़ेरा हैं तुम ने , 
इसमें  जरूर मेरी कोई खत्ता रही होंगी ! 

क़ह के अपने जान को अज़नबी ,
मुझ से ज़्यादा तू रोई होंगी ।।

दर्द औऱ ग़म से कल रात न सोई होंगी तू भी
जैसे वर्षा हैं रात भर बादल ,
वैसे ही तेरी आंख भी कल रात भर वर्षी होंगी। 

तोड़ हर नाता , कैसा होगा अज़हर ?  
बस हर पल तू यही सोंचती होंगी ।।


Azhar Ali Saifi
यूह जो रुख़ फ़ेरा हैं तुम ने , 
इसमें  जरूर मेरी कोई खत्ता रही होंगी ! 

क़ह के अपने जान को अज़नबी ,
मुझ से ज़्यादा तू रोई होंगी ।।

दर्द औऱ ग़म से कल रात न सोई होंगी तू भी
जैसे वर्षा हैं रात भर बादल ,
वैसे ही तेरी आंख भी कल रात भर वर्षी होंगी। 

तोड़ हर नाता , कैसा होगा अज़हर ?  
बस हर पल तू यही सोंचती होंगी ।।


Azhar Ali Saifi