Alone तोड़ जग के सब तंग बंधन तब जीने का मन करता है घाव जो कभी भर ना पाए उन्हें सीने का मन करता है चमक जब बन जाए बोझ कीमत सही ना आँकी जाए निलामी की बदनामी का तब नगीने का मन करता है। पतवारें भी जब है सौंपे निराशा और उदासी अक्सर तब धारा के विपरित बहने का सफीने का मन करता है। कवि कपिल मन करता है।