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Alone तोड़ जग के सब तंग बंधन तब जीने का मन करता

Alone  तोड़ जग के सब तंग बंधन 
तब जीने का मन करता है
घाव जो कभी भर ना पाए 
उन्हें सीने का मन करता है

चमक जब बन जाए बोझ
कीमत सही ना आँकी जाए
निलामी की बदनामी का तब
नगीने का मन करता है।

पतवारें भी जब है सौंपे
निराशा और उदासी अक्सर 
तब धारा के विपरित बहने का
सफीने का मन करता है।
                             कवि कपिल मन करता है।
Alone  तोड़ जग के सब तंग बंधन 
तब जीने का मन करता है
घाव जो कभी भर ना पाए 
उन्हें सीने का मन करता है

चमक जब बन जाए बोझ
कीमत सही ना आँकी जाए
निलामी की बदनामी का तब
नगीने का मन करता है।

पतवारें भी जब है सौंपे
निराशा और उदासी अक्सर 
तब धारा के विपरित बहने का
सफीने का मन करता है।
                             कवि कपिल मन करता है।

मन करता है।