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हर लम्हें में एक नया इंसान। हर इंसान में एक नया ल

हर लम्हें में एक नया इंसान। 
हर इंसान में एक नया लम्हा। 
ढूंढता खुद को अजनबियों में। 
खुद से होकर अंजान हर लम्हा हर इंसान। 
चल रहा, रुक रहा, गिर रहा, संभल रहा। 
भाग रहा, दौड़ रहा, पकड़ रहा, छोड़ रहा। 
चाह रहा खुशी और गम के तार जोड़ रहा। 
तोड़ रहा, मरोड़ रहा, फेंक रहा, बटोर रहा। 
तिल को ताड़, ताड़ को तिल। 
राई को पहाड़, पहाड़ को राई बना झकझोर रहा। 
पर खोज नहीं रहा खु़द को क्योंकि खुद से है खफा। 
चार कदम की दूरी को मीलों का रास्ता समझ मुख मसोड़ रहा। 
धर्म को अधर्म को न्याय को अन्याय को एक ही तराजू में तोल रहा। 
यथार्थ को अन्यथा, संभव को असंभव, संतोष को असंतोष बना इस छोर से उस छोर दौड़ रहा। 
ठहर नहीं रहा स्वयं में बार बार स्वयं को ही खोद रहा। 
होकर अनभिज्ञ इस तथ्य से प्रेम का पथ भूल रहा। 
अंजान होकर अपने स्वरूप से अपनी आंखों में ही धूल झोंक रहा।  #kadam #challenge #kavishala #nojoto #nojotokhabri #kavishala #poetry
हर लम्हें में एक नया इंसान। 
हर इंसान में एक नया लम्हा। 
ढूंढता खुद को अजनबियों में। 
खुद से होकर अंजान हर लम्हा हर इंसान। 
चल रहा, रुक रहा, गिर रहा, संभल रहा। 
भाग रहा, दौड़ रहा, पकड़ रहा, छोड़ रहा। 
चाह रहा खुशी और गम के तार जोड़ रहा। 
तोड़ रहा, मरोड़ रहा, फेंक रहा, बटोर रहा। 
तिल को ताड़, ताड़ को तिल। 
राई को पहाड़, पहाड़ को राई बना झकझोर रहा। 
पर खोज नहीं रहा खु़द को क्योंकि खुद से है खफा। 
चार कदम की दूरी को मीलों का रास्ता समझ मुख मसोड़ रहा। 
धर्म को अधर्म को न्याय को अन्याय को एक ही तराजू में तोल रहा। 
यथार्थ को अन्यथा, संभव को असंभव, संतोष को असंतोष बना इस छोर से उस छोर दौड़ रहा। 
ठहर नहीं रहा स्वयं में बार बार स्वयं को ही खोद रहा। 
होकर अनभिज्ञ इस तथ्य से प्रेम का पथ भूल रहा। 
अंजान होकर अपने स्वरूप से अपनी आंखों में ही धूल झोंक रहा।  #kadam #challenge #kavishala #nojoto #nojotokhabri #kavishala #poetry