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पल्लव की डायरी कण कण प्रकृति का पोषण मेरा करता है

पल्लव की डायरी
कण कण प्रकृति का
पोषण मेरा करता है
हवा पानी शुद्ध मेरे
तन मन को करता है
चाँद सितारे सूरज मेरे
चित्त में ना जाने कितनी उमंगे भरता है
उदासी के क्षणों में दरिया का किनारा
आनन्द मुझ में भरता है
जीवन का कितना भार मैं प्रकृति पर धरता हूँ
कल्पनाओं से इनको हटा दूँ
पल भर का जीवन भी टूटा टूटा भार मय लगता है
                                                   प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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