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शाम के वक़्त नदी के किनारों पे यूँ ही चलते-चलते म

शाम के वक़्त 
नदी के किनारों पे 
यूँ ही चलते-चलते
मैंने तन्हाई से पूछा
की कोई नाराज़गी
है क्या मुझसे 
आज-कल कुछ देर 
से जो आने लगी हो तुम

उसने कोई जवाब नही दिया
बस आँहें भर के मुझको घूरने लगी
मानो कह रही हो की 
जैसे तुम्हे पता ही नही 
आगे मैं कुछ कह न सका
बस अपनी नज़रों को चुरा लिया

मैंने देखा मेरी बेबसी पर 
लहरों को भी हँसना आ रहा था
तभी मुझे महसूस हुआ कि
मेरे पांव पर हौले से गुदगुदा कर 
एक छोटी सी लहर मुझे चिढ़ाती हुई
भाग जाती है और मैं भी मुस्कुरा देता हूँ

मैंने फिर तन्हाई से कहा 
की तुम जानती ही हो
तुम्हारे साथ चंद लम्हात
गुज़ार कर ही तोह मैं
अपने आप को पाता हूँ 
वरना जिंदगी की इस भाग-दौड़
में मैं भी कब का खो जाता 
एक तुम्ही तोह हो जिसने 
मुझे जिंदगी को जीना सिखाया है
मेरे ख़्यालों को उड़ना सिखाया है
मेरे जज़्बातों को निखारना सिखाया है #नज़्म #तन्हाई_से_गुफ़्तगू
शाम के वक़्त 
नदी के किनारों पे 
यूँ ही चलते-चलते
मैंने तन्हाई से पूछा
की कोई नाराज़गी
है क्या मुझसे 
आज-कल कुछ देर 
से जो आने लगी हो तुम

उसने कोई जवाब नही दिया
बस आँहें भर के मुझको घूरने लगी
मानो कह रही हो की 
जैसे तुम्हे पता ही नही 
आगे मैं कुछ कह न सका
बस अपनी नज़रों को चुरा लिया

मैंने देखा मेरी बेबसी पर 
लहरों को भी हँसना आ रहा था
तभी मुझे महसूस हुआ कि
मेरे पांव पर हौले से गुदगुदा कर 
एक छोटी सी लहर मुझे चिढ़ाती हुई
भाग जाती है और मैं भी मुस्कुरा देता हूँ

मैंने फिर तन्हाई से कहा 
की तुम जानती ही हो
तुम्हारे साथ चंद लम्हात
गुज़ार कर ही तोह मैं
अपने आप को पाता हूँ 
वरना जिंदगी की इस भाग-दौड़
में मैं भी कब का खो जाता 
एक तुम्ही तोह हो जिसने 
मुझे जिंदगी को जीना सिखाया है
मेरे ख़्यालों को उड़ना सिखाया है
मेरे जज़्बातों को निखारना सिखाया है #नज़्म #तन्हाई_से_गुफ़्तगू