कि जो अपना था वो इस दुनियां से चला गया। और जो हैं वो परायों के साथ अपनी नई दुनियां बसा गया।किस्मत का लिखा ना मिटा पाई। और जो था उसे बचा भीं न पाई। पहले भीं आंसू निकलते थे आंखों से तकलीफ़ के पर उसे खुशी के आंसु बताती आई। आज़ पैरो तले जब जमीन खिसक गई। जब बेटे ने कहा कि मैं अपने परिवार के लिए जीऊंगा। तू तेरा ठिकाना कहीं और देख लें। हाथ से कटोरी छूटी जिसमें प्यार से पसंदीदा हलवा बना कर लाई थी। बरसो से खा कर बड़े हुए। आज़ किसी के कहने पर मिलावट नजर आ रही है। अरे जिस घर मे शादी कर के आई सोचा अर्थी पर जाऊंगी। पर राज किसी और का आया क्या अब जिंदगी सड़क पर बिताऊँगी। बना के घर दिया बहुत ही चाव से उसे सारे जीवन की पुंजी लगा कर उस घर में पर अब तो मां की टूटी फूटी झोपड़ी भीं छीनी जा रही है। क्या करे भगवान तेरा ये इंसाफ सदा रखा नेकी पे कदम और रखा दिल साफ़। इसे दिन दिखाने से पहले उठा लेता अब भीं बच्चों को दुआ दिए जा रहि है अब कोई मुंह छुपा कर हंस रहा और मां आंखो मे आंसू पोछती हुईं घर से जा रही हैं ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma अब तो जिन्दगी जिन्दगी नही लगती हैं #शॉर्ट_स्टोरी