#OpenPoetry चल पड़ी लिखने को, आज अपनी जीवन-धारा वो, जो है गोपन कथा हमारी, जिसमे जीवन हुई है भारी। स्कन्द पर लिए मैं चलती हूँ, काँटों की शैय्या को सदा। ईश ने ऐसा हमें बनाया, सदा होठों पर हसियाँ लहराया। लहर-लहर कर सहनशीलता से ईश ने जीना सिखलाया। दिल है मेरा, मन है मेरा अंदर ही अंदर बिलखया। बिलख-बिलख मैं सोचा करती, क्या है ज़िन्दगी ये हमारी। आकर सखियाँ मुझे बताती, कभी होगी भाग्योदय तुम्हारी। अब तक मैंने सूर्योदय को देखा, भाग्योदय तो देखा नहीं। माता की अंचल की साया में, पलकर अब मैं बड़ी हुई। अब अतितों में जब जाती हूँ, स्कन्द की शैय्या लिए मचलती हूँ, कब कथा गोपन का पर्दा फास करूँ, या फिर, गूढ़ रहस्य रहने ही दूँ। #रहस्य #पहलीकविता