चादर पर पड़ी सिलवटों को , जब चाहे झाडकर मिटा देते हैं हम पर उसपर पड़े निशान ठीक वैसे ही हैं जैसे हृदय पर नासूर से वह घाव जो समय के साथ और गहराते चले जाते हैं । न जाने कितनी सिलवटें उभरी हुई हैं जीवन में जिन्हें मिटाने की भरसक कोशिश करते हैं हम, मिट तो जाती हैं पर निशान ताउम्र छोड़ जाती हैं जिनकी गिरह चाहकर भी सुलझ पाती हैं कभी । रश्मि वत्स मेरठ(उत्तर प्रदेश) ©Rashmi Vats #चादर #सिलवटें#निशान#घाव