Nojoto: Largest Storytelling Platform

शायद ये ख़याल मेरे अंदर ही सही एक लौ तो सुलगा ही गई

शायद ये ख़याल मेरे अंदर ही सही
एक लौ तो सुलगा ही गई 
देखी है मैंने इतनी बेबस हस्तियाँ
ख़ुद को बेबस इतना कभी पाया नही कभी ! 

( अनुशीर्षक में ... ) DQ : 

शायद मैं हूँ कभी कभी , 
पाने को ख़ुद की सर जमीं ,
बेमतलब कुछ भी नही ,
जानता हूँ ये भी अभी !
  
शायद मैं हूँ कभी कभी ,
शायद ये ख़याल मेरे अंदर ही सही
एक लौ तो सुलगा ही गई 
देखी है मैंने इतनी बेबस हस्तियाँ
ख़ुद को बेबस इतना कभी पाया नही कभी ! 

( अनुशीर्षक में ... ) DQ : 

शायद मैं हूँ कभी कभी , 
पाने को ख़ुद की सर जमीं ,
बेमतलब कुछ भी नही ,
जानता हूँ ये भी अभी !
  
शायद मैं हूँ कभी कभी ,