green-leaves कुछ गेहरे अल्फज़:- तौफ़ा-ए-ज़िंदगी की रिदा क्या है? समझो तो दुआ, ना समझो तो सज़ा सा है। मेहमान-ए-हसरत की उल्फत तो देखिये, बेचनियों का मंज़र, सासों पे हावी सा है। तौबा-ए-तामीर तो देखिये, नुमाइंदगी एक जियारत सा है। ©ALFAZ DIL SE #GreenLeaves #DrDanQuote