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एक बेहतरीन गजलकार अमर्ष राज की शानदार ग़ज़ल यूं

एक बेहतरीन गजलकार अमर्ष राज की शानदार ग़ज़ल 

यूं तो मेरी भी बदहाली-ए-किस्मत है कई अर्सों से अमर्ष राज,
जब दुबारा पढ़ा इसको तो हम भी शायद शुमारी-ए-खुशकिस्मत में आ गए।
 तुझको देखा था वहां चिलमन से ज़रा हैरत में आ गये।
इक़रार थोड़ा रुक कर करना था उजलत में आ गये।
कह पा नही रह था कुछ भी मुकम्मल तुझसे ए जाना,
बड़े गुस्ताख़ बने फिरते थे शर्मीली फ़ितरत में आ गये।
तुमने उससे कहा क्या था जो बाज़ू में तुम्हारे खड़ी थी
देख तुम्हारी शोख़ अदाओं से ज़रा गफ़लत में आ गये।
नया सा इश्क़ मेरा था मेरा इश्कियां तज़ुर्बा भी नया था
अमां पत्थर तोड़ा पानी निकाला ख़्वामख्वा मेहनत में आ गये।
एक बेहतरीन गजलकार अमर्ष राज की शानदार ग़ज़ल 

यूं तो मेरी भी बदहाली-ए-किस्मत है कई अर्सों से अमर्ष राज,
जब दुबारा पढ़ा इसको तो हम भी शायद शुमारी-ए-खुशकिस्मत में आ गए।
 तुझको देखा था वहां चिलमन से ज़रा हैरत में आ गये।
इक़रार थोड़ा रुक कर करना था उजलत में आ गये।
कह पा नही रह था कुछ भी मुकम्मल तुझसे ए जाना,
बड़े गुस्ताख़ बने फिरते थे शर्मीली फ़ितरत में आ गये।
तुमने उससे कहा क्या था जो बाज़ू में तुम्हारे खड़ी थी
देख तुम्हारी शोख़ अदाओं से ज़रा गफ़लत में आ गये।
नया सा इश्क़ मेरा था मेरा इश्कियां तज़ुर्बा भी नया था
अमां पत्थर तोड़ा पानी निकाला ख़्वामख्वा मेहनत में आ गये।