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वे भी थे किसी क़े बच्चे! पर उनके पास खिलौने नहीं थे

वे भी थे किसी क़े बच्चे!
पर उनके पास खिलौने नहीं थे!
वे भटक रहे थे गली गली,
लटकाये कंधे मे बड़ा सा थैला?
दूध दही की थैलियां,
पानी, जूस की बोतले,
देखकर, चमकती उनकी आँखें!
उनके बिखरे बाल,
बदन लगता निढाल,
इसी दुनियाँ क़े है ये बच्चे!
जहाँ किसी का बच्चा, चैन से
मखमल क़े गद्दे मे सोता है?
फिर ऐसा होता क्यों है?
सुखी बच्चा फिर भी रोता क्यों है?
बड़ा सा थैला लटकाये बच्चे
लगता है, जैसे ढो रहे हों,
अपनी, ख़ुशी अपना दर्द भी
उस बड़े से थैले मे।

©Kamlesh Kandpal
  #Garibi