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वो जो शायर था चुप सा रहता था, बेहकी बेहकी बातें कर

वो जो शायर था चुप सा रहता था,
बेहकी बेहकी बातें करता था,
आँखे कानों पे रख के सुनता था,
गूंगी ख़ामोशियों की आवाज़ें,
जमा करता था चाँद के साये,
गीली गीली सी नूर की बूँदें,
ओख में भर के खड़खड़ाता था,
रूखे रूखे से रात के पत्ते,
वक़्त के इस घनेरे जंगल में,
कच्चे पक्के लम्हें चुनता था,
हां.. वोही... वो अजीब सा शायर,
रात को उठ के कोहनियों के बल,
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था,
कल सुना है ज़मीं से उठ गया है वो.....

―गुलज़ार— % & #रातकाअफ़साना #शायरी_के_अल्फ़ाज़ #योरकोट_दीदी #योरकोटबाबा
वो जो शायर था चुप सा रहता था,
बेहकी बेहकी बातें करता था,
आँखे कानों पे रख के सुनता था,
गूंगी ख़ामोशियों की आवाज़ें,
जमा करता था चाँद के साये,
गीली गीली सी नूर की बूँदें,
ओख में भर के खड़खड़ाता था,
रूखे रूखे से रात के पत्ते,
वक़्त के इस घनेरे जंगल में,
कच्चे पक्के लम्हें चुनता था,
हां.. वोही... वो अजीब सा शायर,
रात को उठ के कोहनियों के बल,
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था,
कल सुना है ज़मीं से उठ गया है वो.....

―गुलज़ार— % & #रातकाअफ़साना #शायरी_के_अल्फ़ाज़ #योरकोट_दीदी #योरकोटबाबा
madhav1592369316404

Madhav Jha

New Creator