जिस प्रकार बाहर के वातावरण में वसंत ग्रेशम एवं पतझड़ इत्यादि ऋतु का आगमन होता रहा है वैसे ही हमारे भीतर भी हिंदुओं का "होता रहा है भीतर में प्रकट होने वाली यह रितु हमारी मानसिक दिशाएं होती हैं दरअसल बसंतपुर पतझड़ सुख-दुख तथा खुशी उदासी रूपी हमारे मानसिक दिशाओं के प्रति किए कारण है कि मनुष्य को यह दिन दोनों ही रेत व अन्य देशों की तुलना में अधिक आकर्षित करती है यह बहुत स्वाभाविक भी है जब हम खुश होते हैं तो हमारे भीतर खुशियों वाला रसायन प्रभावित होते हैं ऐसे में हमारे भीतर दुख की भावना पैदा करने वाले रसायन समिति अवस्था में चले जाते हैं दूसरी ओर जब हम खुद दुखी होते हैं जो हमारे भीतर दुख और दासी वाला रसायन प्रभाव से होता है जिसके फलस्वरूप हम दुखी और उदासीन महसूस करने लगते हैं आध्यात्मिक गुरु ओशो ने भी कहा है जैसे बाहर में वसंत है वैसे ही भीतर भी वसंत घटता है और जैसे बहार पतझड़ है वैसे ही भीतर भी पतझड़ आता है फर्क इतना है कि बाहर के औसत और पतझड़ नियति से चलते हैं वही भीतर के वसंत और पतझड़ नियतिवाद नहीं है आप स्वतंत्र हो चाहे पतझड़ हो जाए वसंत हो जाए इतनी स्वतंत्र चेतना की है तात्पर्य यह है कि अपने मित्र प्रकट होने वाली मौसम के लिए स्वार्थ हमें भी जिम्मेदार होते हैं यदि हम चाहे तो अपने भीतर बसंत को प्रकट कर सकते हैं और यदि चाहे तो 5 + को बुला सकते हैं ©Ek villain #जीवन में बसंत का महत्व #mahashivratri